Tuesday 9 February 2016

मुंबई बांद्रा के नेशनल हेराल्ड की जमीन का गैरइस्तेमाल हुआ

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के भांडाफोड़ के बाद आनन फानन में महाराष्ट्र की सरकार ने गठित की हुई गौतम चटर्जी की एकसदस्यीय कमिटी ने नेशनल हेराल्ड की जमीन का गैरइस्तेमाल होने पर मुहर लगाने से अब कानूनी प्रक्रिया में मामला जाने के आसार हैं। गौतम चटर्जी की एकसदस्यीय कमिटी ने 20 पन्ने की रिपोर्ट नगर विकास के प्रधान सचिव मनु कुमार श्रीवास्तव को सौंपी हैं। मुंबई के बांद्रा पूर्व के प्राइम लोकेशन पर वर्ष 1983 में मेसर्स असोसिएट जर्नल्स कंपनी को सरकार ने 3479 वर्ग मीटर की जमीन अखबार, नेहरु लायब्ररी और रिसर्च सेंटर के लिए जमीन दी थी। इस जमीन पर 29 वर्षो तक किसी भी तरह का निर्माण काम न होने की शिकायत सबसे पहले आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सरकार से करते हुए कारवाई की मांग की थी। गलगली की शिकायत के बाद काम तो शुरु हुआ और मौजूदा भाजपा सरकार ने गौतम चटर्जी की एकसदस्यीय कमिटी का गठन कर जांच शुरु कर दी। गौतम चटर्जी ने पाया कि 83 हजार वर्ग फीट के निर्माण काम में बेसमेंट 11 हजार वर्ग फीट और 9 हजार वर्ग फीट बिल्डिंग की ऊंचाई पर बताया गया हैं। जो अपने आप में एक उल्लंघन है क्योंकि सरकारी नियमों के अनुसार कोई भी 15% से अधिक व्यावासायिक इस्तेमाल नही कर सकता हैं। जांच कमिटी ने पाया कि यह एकबार वितरित जमीन का मामला नही हैं। कंपनीला 823 वर्ग मीटरची अतिरिक्त जमीन 4 नवंबर 1983 ला अतिरिक्त जिलाधिकारी के विरोध के बाद भी दी गई और सटी हुई 191 वर्ग मीटर की जमीन नवंबर 1990 को दी गई। सरकारी कार्यालय और पिछड़े जाति के छात्रों के होस्टल के बजाय कंपनी को अतिरिक्त जमीन दी गई, जबकि जिलाधिकारी इसतरह होनेवाले जमीन के गैरइस्तेमाल को रोक सकता था। जमीन पर लायब्ररी और रिसर्च सेंटर बनाने पर सवाल करने के बजात कांग्रेस के नेतृत्ववाली सरकार ने कई बार एक्स्टेंशन दिया। 30 जून 2001 का राजस्व विभाग के ज्ञापन ने कई एक्सटेंशन दिए गए कंपनी को विशेष मामला के तहत लीज जमीन को मालिकाना बना दिया। जो नियमों के विरोध में था और बकाया 2.78 करोड़ का ब्याज भी माफ़ किया गया। कमिटी ने इस पर सरकार को पुर्नविचार करने की सलाह दी हैं। यह जमीन तत्कालीन जिलाधिकारी अरुण भाटिया की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी को दी गई थी। अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मांग की है कि जमीन वापस लेने पर कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ सकता हैं। इससे बेहतर यह है कि ब्याज की रकम और अतिरिक्त रकम जुर्माना के तौर पर सरकार वसूल करे तथा इस बिल्डिंग के एक मंजिल पर पिछड़े जाति के छात्रों के लिए होस्टल बनाया जाए। शेष निर्माण से कंपनी अखबार का कार्यालय के साथ लायब्ररी और रिसर्च सेंटर खोल सकता हैं।।

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