Saturday 25 April 2015

मुंबई की 'डीपी' के हत्यारे

मुंबई सबकी है और हर बार इसका लूक बदलने की कोशिश की जाती है लेकिन मुंबई ना बदली है ना बदलेगी। इसी कड़ी में इनदिनों इस शहर के डीपी यानी विकास प्लान को लेकर बवाल मचा हुआ है।आम जनता और राज्य की विभिन्न पार्टीओं के एकमुश्त विरोध के बाद सीएम ने डीपी में बदलाव कर उसे फिर 4 महीने के भीतर फिर एक बार जनता के बीच लेकर जाने का कड़ा फैसला किया है। सैकड़ो गलतियां और विकास से कोसो दूर इस विवादित 'डीपी' के असली खलनायक और हत्यारे कौन है? किसकी गलतियों और अति आत्मविश्वास से 'डीपी' समय पर नही आ पाया है? इसका जबाब भी ढूंढना उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना इसे नया प्रारुप देकर मुंबई को सुंदर बनाना है। हर 20 वर्ष के बाद मुंबई मनपा विकास का प्रारुप तैयार करती है जिसमें हर एक सुविधा पर जोर दिया जाता है। खुली जगह से लेकर मनोरंजन मैदान, उद्यान, स्कूल, अस्पताल, तालाब, बस डेपो, समाजकल्याण केंद्र, धार्मिक स्थान और न जाने कितने कारणों के लिए जमीन को आरक्षित किया जाता है। इससे आम जनता को सहूलियत देना मुख्य मकसद होता है। लेकिन मौजूदा 'डीपी' इसलिए विवादित हुआ कि ना किसी को ख़ास लाभ हुआ ना पुरानी चीजों को बरकरार रखा गया है। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा को भी 'डीपी'ने विच्छेदित करने काम किया है। सीएम ने 4 महीने में दुरुस्त कर नया 'डीपी' का प्रारुप बनाने का आदेश मनपा प्रशासन को दिया है लेकिन अबतक 50000 शिकायते और सुझाव की रद्दी जमा करनेवाली मनपा प्रशासन इसके हल और निपटान के मामले में सक्षम नही होने का संदेह आम जनों में है और उससे अधिक संदेह मुंबई की हर एक एनजीओ, राजनीतिक पार्टी और ख़ास लोगों में है। हम बात कर रहे थे कि आखिर ऐसी कौनसी ताकत 'डीपी' को अमल में लाकर मुंबई को विनाश के गर्त में ड़ालने की कोशिश में थी। वर्ष 2014-2034 इन 20 वर्षो के लिए विकास का नया प्रारुप इतना भी कठिन नही था कि मुंबई का हर एक दुसरा व्यक्ती इसे लेकर नाराज था , असहमत था। इस 'डीपी' को बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी नाईक दंपत्ति थी। दिनेश नाईक इसके मुखिया है और उनकी पत्नी अनिता नाईक भी उसी विभाग में जुटी हुई है। इन्होंने हर मामले को इतना गोपनीय बना दिया कि उनके अधिनस्थ काम करनेवालों को भी नए 'डीपी' में होनेवाले बदलाव की जानकारी नही होने की चर्चा मनपा के गलियारों में है। इसके अलावा वी के फाटक है जो नाईक से भी ऊपरी अधिकारी है। वे एमएमआरडीए के सेवानिवृत्त अधिकारी है। इन्होंने  एमएमआरडीए स्थित बीकेसी की खुली जमीन ही पुरी मुंबई है, ये मानकर शायद नए नए प्रयोग किए और विवाद की शुरुआत हुई।  सबसे बड़ी और एक गलती ये हुई कि बालचंद्रन जो मौजूदा 'डीपी' विभाग के मुखिया है और उनके पास लंबा अनुभव था उन्हें भी इस प्रक्रिया से दूर रखा गया। नाईक को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देकर मनपा प्रशासन ने अपने ही घर में गड्डा खुदवाया जो आज सबके लिए गले की हड्डी बन गई है। इसके पहले वाला विकास प्लान वर्ष 1991 से 2011 इस कार्यकाल के लिए था। उसवक्त मनपा के करीब 80 अभियंता एवमं कर्मचारी ने किसी भी तरह की गलती किए बिना प्लान को बनाया था। मनपा ने वर्ष 2009 से नया प्लान बनाने की प्रक्रिया को शुरु कर सर्वप्रथम 'एस.सी.इंडिया लिमिटेड' इस सलाहकार की नियुक्ती की।  उसके बाद उस एजेंसी से मन मुताबिक और समाधानकारक काम न होने पर 'एजिस जिओ प्लॉन' इस एजेंसी को काम दिया। इन दोनों एजेंसी को मिलकर 12 करोड़ दिए गए। लेकिन उन्होंने पुरे पैसे लेने के बाद भी ईमानदारी और जमीनी हकीकत के आधार पर काम नही करने से विकास प्लान विवादित हुआ।नए 'डीपी' में मुंबई शहर की पुरानी बिल्डिंग और वहां के निवासियों के साथ न्याय नही किया गया। निजी सोसायटी के भीतरी रोड को आरक्षित करने की गलती की गई। एनडी जोन यानि विकास के लिए प्रतिबंधक क्षेत्रों को व्यावसायिक किया गया। मसलन गोरेगांव की सहारा की जमीन सबसे बड़ा उदाहरण है। मंदिर, मस्जिद, चर्च और अन्य धार्मिक तथा ऐतिहासिक वास्तुओं को बदलने का पाप किया गया। इन्हीं सभी शिकायतों और सुझाव के बाद सीएम देवेंद्र फड़नवीस ने इसे सुधारित कर 4 महीने का समय दिया है। जबकि मीडिया से रुबरु होते हुए सीएम साहब ने मुंबई का डीपी रद्द करने की बात को जोर देकर कहा था। आज तक 55 हजार से अधिक शिकायते और सुझाव प्राप्त हुए है जिसका निपटान करने के लिए लंबा समय लग सकता है। मुंबई में शायद पहली बार इतना बड़ा बवंडर हुआ होगा कि एक 'डीपी' को लेकर सभी राजनीतिक पार्टी और नेताओं के साथ एनजीओ साथ आए है। इस 'डीपी' का बिल किसके सिर पर फोड़ा जाएगा, ये तो आनेवाला समय बताएगा लेकिन मनपा आयुक्त सीताराम कुंटे को हटाकर राज्य सरकार कुछ कारवाई किए जाने का खेल खेल सकती है। लेकिन जो 'डीपी' के असली हत्यारे है उन्हें क्या सजा मिलेगी और ठेकेदार कंपनी पर क्या कारवाई होगी? ये अब तक गुलदस्ते में ही है।

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